नवरात्रि में हर तरफ देवी मां के जयकारे की गुंज सुनाई दे रही है. देशभर में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां माता को बलि देने की प्रथा चली आ रही है. ऐसा ही एक मंदिर बिहार का कैमूर जिले में स्थित है जहां माता को रक्तहीन बलि दी जाती है. यह मंदिर इसलिए भी खास है, क्योंकि ये स्ट्रक्चर के लिहाज से देश में माता का सबसे पुराना मंदिर है. माना जाता है कि इसे 5वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया था. हर दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मंदिर खुला रहता है.

बता दें कि ये मंदिर बिहार का कैमूर जिले के भभुआ मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर भगवानपुर ब्लॉक स्थित रामगढ़ पंचायत में पंवरा पहाड़ी के शिखर पर ‘माता मुंडेश्वरी धाम’ मंदिर है. ये पटना से 200 किमी दूर सासाराम के बाद आता है. यहां देश के तमाम हिस्सों से भक्त मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ये पहाड़ी 600 फीट की ऊंची है. नीचे से मंदिर जाने के दो रास्ते हैं. पहला सीढ़ियों से, दूसरा घुमावदार सड़क, जो 524 फीट की उंचाई तक जाती है. इनके बाद फिर सीढ़ियों पर चढ़कर मंदिर तक जाया जाता है.

अनोखी रक्तहीन बलि की प्रथा

‘माता मुंडेश्वरी धाम’ मंदिर को यहां के इतिहास के अलावा यहां होने वाली रक्तहीन बलि के लिए भी जाना जाता है. यहां बकरे की जान नहीं ली जाती, बल्कि उन्हें मंत्रों से कुछ देर के लिए बेहोश कर दिया जाता है और इसे ही बलि माना जाता है. इस बारे में मंदिर के प्रधान पुजारी का कहना है कि इस मंदिर का इतिहास ऐसा है कि इसके बारे में कोई सही-सही जानकारी नहीं दे पाएगा. वो बताते है कि मौजूदा समय में मंदिर का गर्भगृह सिर्फ पहाड़ी है. जबकि, पहले कभी यहां चारों तरफ मंदिर बने थे इसका एक बड़ा स्ट्रक्चर था. जिसे मुगल शासकों ने बाद में तोड़ा दिया था. इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं.

मान्यताओं के अनुसार, यहां चंड और मुंड नाम के दो असुर रहा करते थे. जो यहां के लोगों को प्रताड़ित करते थे, लोगों की पुकार सुन मां धरती पर आईं और दोनों असुरों का वध किया था. माता ने सबसे पहले चंड का वध किया और भाई को मरा देख मुंड मां से युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया. इसके बाद देवी मां ने इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध किया था. इसी के बाद से यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है.

क्या है मूर्ति का रहस्य?

बता दें कि मां मुंडेश्वरी के मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी भगवान शिव का शिवलिंग भी है, जिसकी भव्यता अपने आप में अनोखी है. भोलेनाथ की ऐसी मूर्ति भारत में बहुत कम पाई जाती है. इस मूर्ति में एक ऐसा रहस्य छुपा है, जिसको आज तक कोई समझ नहीं पाया. मंदिर के पुजारी की मानें तो ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति का रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है. यहां शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता.