विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजनीति के पुरोधा रहे समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव के सामने अपने यादव वोट बैंक को बचाने की चुनौती है. साथ ही अपने नेताओं को भी संभालने की जरूरत है.
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बता दें कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी के कई बड़े यादव नेता और अन्य बिरादरियों के नेताओं ने सपा का साथ छोड़ दिया है. प्रदेश में यादवों की संख्या करीब 12 प्रतिशत है, जबकि पिछड़े वर्ग के यादव की संख्या साढ़े 19 फीसदी है. ऐसे में इटावा, मैनपुरी, औरैय्या, फिरोजाबाद, कन्नौज, फर्रुखाबाद में सपा का गढ़ माना जाता है. यहां पर तमाम कोशिशें की गई, लेकिन समाजवादी पार्टी की जड़ों को हिलाया नहीं जा सका है. हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से स्थितियां अब बदल चुकी हैं.
कभी थे करीब अब दूरी बढ़ चुकी है
कभी समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले यादव नेताओ का एक बड़ा धड़ा अब अलग अलग सियासी दलों के साथ खड़ा हो चुका है. जिसमें पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव, पूर्व सांसद सुखराम सिंह यादव, पूर्व मंत्री देवेंद्र सिंह यादव, पूर्व सभापति रमेश यादव, पूर्व विधायक हरिओम यादव अब साइकिल छोड़कर कमल खेमे के साथ खड़े हैं. इस तरह से कई और यादव नेता गुमनामी में है और समाजवादी पार्टी के खिलाफ कार्य कर रहे हैं.
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए अखिलेश-शिवपाल में छिड़ी थी रार
मुलायम सिंह यादव के जीवित रहते ही शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव में भरे मंच पर रार छिड़ी थी. जिसकी वजह से हर तरफ सपा की फजीहत हुई थी. इसके बाद शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी छोड़कर नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी बनाए थे, लेकिन समय बीतने के बाद अखिलेश और शिवपाल में समझौता हुआ और आज शिवपाल फिर से सपा के साथ हैं. अभी हाल में लोकसभा चुनाव में भी बदायूं से समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया था, लेकिन शिवपाल सिंह यादव अपने बेटे के लिए टिकट के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने कहना पड़ा था, जिसके बाद उनके पुत्र को टिकट दिया गया.
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