विक्रम मिश्र, लखनऊ. तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) का आरंभ हो चुका है. पवित्र नदी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाले आस्था के इस महा आयोजन में 26 फरवरी तक करोड़ों लोग डुबकी लगाएंगे. श्रद्धालुओं के लिए यूपीएसटीडीसी (UPSTDC) ने विभिन्न पैकेज तैयार किए गए हैं. इन्हीं में से एक है अखाड़ा वॉक टूर पैकज (Akhada Walk Tour Packages) है. जिसके लिए 2000 रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है. उत्तर प्रदेश स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (यूपीएसटीडीसी) परेड ग्राउंड के टेंट कॉलोनी से सुबह 7 बजे से वॉक टूर शुरू करेगा और 09ः30 बजे ढाई घंटे में विभिन्न अखाड़ों का भ्रमण कराएगा. इन अखाड़ों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. भ्रमण के लिए कम से कम पांच लोगों का ग्रुप होना चाहिए. पर्यटक इसकी बुकिंग upstdc.co.in से कर सकते हैं.

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ये जानकारी प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दी. उन्होंने बताया कि श्रद्धालुओं, पर्यटकों की सुविधा के लिए और प्रयागराज मेले के विहंगम दृश्य अवलोकन के लिए इसकी शुरूआत की गई है. अखाड़ा वॉक टूर के दौरान श्रद्धालुओं को प्रयागराज की प्राचीनता, बदलते स्वरूप और कुम्भ क्षेत्र में स्थित ऐतिहासिक स्थलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी. इसके लिए विशेषज्ञ और गाइड की व्यवस्था की गई है. आखाड़ा वॉक करने वाले कम से कम 05 लोग यूपीएसटीडीसी पर बुकिंग कराकर अखाड़ा वॉक टूर में शामिल हो सकते हैं.

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कॉम्बो टूर पैकेज की भी व्यवस्था

पर्यटन मंत्री ने बताया कि उत्तर प्रदेश स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (यूपीएसटीडीसी) ने श्रद्धालुओं/पर्यटकों की सुविधा के लिए कॉम्बो टूर पैकेज (Combo Tour Packages) भी लांच किया है. जिसमें 3500 रुपये में अखाड़ों के साथ-साथ नागा साधुओं, अघोरी संप्रदाय और कल्पवासियों को करीब से देखने-समझने का अवसर प्राप्त होगा. कॉम्बो टूर पैकेज के तहत प्रतिदिन सुबह 07ः00 बजे से दोपहर 12ः00 बजे तक भ्रमण कराया जा रहा है. इसकी समय अवधि करीब 5 घंटे की है. इसकी शुरुआत परेड ग्राउंड के टेंट कॉलोनी से होगी. टूर के दौरान प्रतिभागियों को वॉक एक्सपर्ट, मेले का नक्शा, एक प्रिंटेड हैंडआउट, इको-फ्रेंडली कैरी बैग और 1 बोतल मिनरल वॉटर उपलब्ध कराई जाएगी.

अखाड़ों की संक्षिप्त जानकारी-

जयवीर सिंह ने बताया कि इन अखाड़ों के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी प्रसारित कराई जा रही है. इन अखाड़ों में-

  • श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा– भारत के सबसे प्रमुख और प्राचीन अखाड़ों में से एक है. जिसका हिंदू संन्यासी परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान है.
  • श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी– सबसे प्रभावशाली अखाड़ों में से एक, जो हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय से संबंधित है.
  • श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी– इसका इतिहास एक सहस्त्राब्दी से भी अधिक पुराना है.
  • श्री पंच अटल अखाड़ा– इस अखाड़े का इतिहास लगभग 1,400 वर्षों से अधिक पुराना है. दशनामी संन्यास परंपरा के सात अखाड़ों में से एक, अटल अखाड़ा भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में विशेष स्थान रखता है.
  • श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा-देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में से एक, जो दशनामी सन्यास परंपरा का हिस्सा है.
  • श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती– शैव संप्रदाय के सात प्रमुख अखाड़ों में से एक, अपनी अद्वितीय संरचना और महत्वपूर्ण परंपराओं के लिए विख्यात है.
  • श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा– इसे 6वीं शताब्दी में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था. यह ऐतिहासिक अखाड़ा काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित है.
  • श्री पंचदशनाम अग्नि अखाड़ा– इसे श्री शंभू पंच अग्नि अखाड़ा भी कहा जाता है. शैव संप्रदाय में अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है. अग्नि अखाड़ा अपनी विशिष्ट प्रथाओं और रीति-रिवाजों का पालन करता है.
  • श्री दिगंबर अनी अखाड़ा– वैरागी वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़ों में से एक है. यह अपनी समृद्ध परंपराओं और विशिष्ट प्रथाओं के लिए प्रसिद्ध है.
  • श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा-संत अभयराम दास जी द्वारा स्थापित यह अयोध्या के सबसे प्रभावशाली अखाड़ों में से एक है.
  • श्री पंच निर्माेही अनी अखाड़ा– संत रामानंद द्वारा स्थापित हिन्दू संप्रदाय का प्रमुख अखाड़ा है. यह सादगी, ब्रह्मचर्य और प्रभु श्रीराम की भक्ति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है.
  • श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन-सन 1825 में हरिद्वार में स्थापित, उदासीन संप्रदाय का एक प्रमुख संस्थान है. इसकी स्थापना निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज ने की थी. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन– इसे उदासीन पंचायती नया अखाड़ा भी कहा जाता है. 1913 से अखाड़ा अपने संप्रदाय का प्रतिनिधित्व कर रहा है.
  • श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा-स्थापना 1862 में हुई थी. अखाड़े का इतिहास सिख मठवासी परंपराओं के विकास और समेकन को दर्शाता है.