नीरज काकोटिया, बालाघाट। मध्य प्रदेश के बालाघाट से प्रशासन के दावों की पोल खोलती एक तस्वीर सामने आई है। जो न केवल खोखले विकास की गवाही दे रही है, बल्कि चीखते बिलखते हुए यह सवाल कर रही है, कि आखिर यहां निवासरत लोगों का क्या कसूर है, जो मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी मोहताज नजर आ रहे हैं।
मामला बालाघाट जिले के अति नक्सल प्रभावित आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का है। जहां आज भी लोग सड़क, बिजली, पानी सहित अन्य सुविधाओं के लिए तरस रहें है। यह तस्वीर उस गांव की दासतां बयां कर रही है, जहां सड़क के अभाव में एक प्रसूता को खाट के सहारे एम्बूलेंस तक पंहुचाया जा रहा है। आलम यह है कि आज भी इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निवासी आदिवासियों को सड़क तक नसीब नहीं हो रही है। आखिर यहां रह रहे लोगों का क्या कसूर है, जो विकास की मुख्य धारा से आज तक नहीं जुड़ पाए।
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प्रसूता को खाट का सहारा
ग्राम माहुरदल्ली निवासी 24 वर्षाीय इमला पति भागचंद परते अपने मायके ग्राम केरीकोना गई हुई थी। जहां प्रसव पीड़ा के दौरान 108 को बुलाया गया, लेकिन सड़क के अभाव में 108 प्रसूता तक नहीं पहुंच सकी, ऐसी परिस्थिति में 108 के पायलट विशाल नागरे एवं ईएमटी मृत्युंजय पाठक ने परिजनों के साथ प्रसूता को खाट पर लेटाया और खाट पर ही लेकर कर एम्बुलेंस तक ले जाया गया। जिसके बाद दर्द से कराहती प्रसूता को प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र सोनगुड्डा लाया गया, जहां क्रिटीकल कंडीशन के कारण तत्काल प्रसूता को जिला चिकित्सालय भेज दिया गया।
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