हरिहर मिलन: झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम में हर साल एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसे ‘हरिहर मिलन‘ के नाम से जाना जाता है. यह परंपरा भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है और होली से पहले मनाई जाती है.

इस वर्ष यह आयोजन 13 मार्च को होगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन बाबा वैद्यनाथ देवघर आए थे. इस अवसर पर विशेष अनुष्ठान होते हैं, जहां भगवान कृष्ण महादेव से मिलने आते हैं और दोनों देवता आनंदपूर्वक होली खेलते हैं.

Also Read This: Holika Dahan 2025: होलिका दहन की राख, शनिदोष, सौंदर्य वृद्धि से लेकर कारोबार में दिलाती है सफलता…

‘हरिहर मिलन’ का पौराणिक महत्व

इस परंपरा की जड़ें एक प्राचीन कथा से जुड़ी हैं. रावण ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे लंका चलें. शिव ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवलिंग का रूप धारण किया और एक शर्त रखी कि यदि रावण ने शिवलिंग को कहीं रखा, तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा. यात्रा के दौरान भगवान विष्णु ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर रावण को भ्रमित किया, जिससे वह शिवलिंग को धरती पर रख बैठा और वह स्थायी रूप से वहीं स्थापित हो गया. यह स्थान वैद्यनाथ धाम के रूप में प्रसिद्ध हुआ.

गुलाब से खेली जाती है होली

हरिहर मिलन के दिन भगवान कृष्ण की मूर्ति विशेष रूप से निकाली जाती है. वे बैजू मंदिर के पास झूला झूलते हैं और फिर परमानंद महादेव के पास जाकर गुलाब के फूलों से होली खेलते हैं. इस दौरान भगवान को मालपुआ और बलि का भोग अर्पित किया जाता है. इस दिव्य परंपरा में भाग लेने भक्त बड़ी संख्या में आते हैं, जिससे यह आयोजन भक्ति, आनंद और श्रद्धा का संगम बन जाता है.

Also Read This: History of Holi: कैसे शुरू हुई होली मनाने की परंपरा, सबसे पहले होली किसने खेली…