शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्यप्रदेश में दुग्ध उत्पादक किसानों की बदहाली और सांची डेयरी को कमजोर करने की सरकारी साजिश के संबंध में कांग्रेस ने केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है। सांची डेयरी की वर्तमान स्थिति और दुग्ध उत्पादक किसानों की बदहाली का मुद्दा पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने उठाया है। जीतू पटवारी ने अमित शाह से सांची डेयरी की जांच के लिए स्वतंत्र समिति गठित करने का आग्रह किया है। सांची पार्लरों की लंबित फाइलों को निपटाने और दूध संकलन, मूल्य निर्धारण और वितरण तंत्र को पारदर्शी बनाने का भी आग्रह किया है। कहा- अगर सहकारिता की मूल भावना को जिंदा रखना है, तो सांची को बचाना ही होगा।
जमीनी हकीकत इससे ठीक उलट
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने पत्र में लिखा- भोपाल में पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने यह घोषणा की थी कि प्रदेश देश के कुल दुग्ध उत्पादन में अपना योगदान बढ़ाकर 9% से 20% तक पहुंचाएगा! आपने राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने का निर्देश भी दिया था! लेकिन खेद की बात है कि मध्यप्रदेश भाजपा सरकार ने खुद को केवल एक ‘हवाई लक्ष्य’ तक ही सीमित रखा है। जमीनी हकीकत इससे ठीक उलट है।
मध्यप्रदेश के दुग्ध उत्पादकों की आत्मा रही सांची डेयरी को एनडीडीबी में विलीन कर देने के 100 दिन बाद ही यह स्पष्ट हो गया है कि यह निर्णय न किसानों के हित में है, न ही उपभोक्ताओं के। इसके दुष्परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं
सांची डेयरी में गिरावट के तथ्य :
- दूध संकलन में गिरावट : वर्ष 2023-24 में इंदौर जिले में प्रतिदिन 94,496 किग्रा दूध का संकलन हुआ था, जो 2024-25 में घटकर 85,438 किग्रा रह गया।
- दूध बिक्री में कमी : प्रतिदिन दूध की बिक्री 1.56 लाख लीटर से घटकर 1.51 लाख लीटर हो गई है।
- संगठनों में कमी : 2023-24 में 385 समितियां थीं, जो अब घटकर 362 रह गई हैं।
सांची पार्लर योजना की बदहाली :
- उदाहरण के लिए इंदौर संभाग में ही पार्लर खोलने के 257 आवेदन लंबित हैं।
- यहां अब तक सिर्फ 57 ही मंजूर हुए हैं, जिनमें भी 31 ही शुरू हो पाए हैं।
- इंदौर शहर में भी 74 आवेदन लंबित हैं, एक ही पार्लर को मंजूरी मिली है।
- इंदौर विकास प्राधिकरण के प्लानिंग क्षेत्र में 76 आवेदन हैं, एक भी स्वीकृत नहीं।
निजी कंपनियों का फायदा, सांची को नुकसान
सांची के प्रति सरकारी उपेक्षा और अनिर्णय का सीधा लाभ कुछ निजी डेयरी कंपनियों को मिल रहा है, जिन्होंने तेजी से अपने उत्पाद बाजार में उतार दिए हैं। यह न सिर्फ सांची की ब्रांड साख को कमजोर कर रहा है, बल्कि किसानों को न्यूनतम दरों पर दूध बेचने के लिए मजबूर कर रहा है।
किसानों के साथ खुला धोखा :
मध्य प्रदेश के दुग्ध उत्पादक किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की बजाय उन्हें आर्थिक संकट की ओर धकेला जा रहा है। यह किसान अब सरकारी उपेक्षा, अफसरशाही की लापरवाही और राजनीतिक उदासीनता के शिकार हो गए हैं।
महोदय,
आप देश के सहकारिता मंत्री हैं। आपकी जिम्मेदारी है कि सहकारी संस्थाओं को मजबूत बनाकर किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करें, लेकिन यहां राज्य सरकार की नाकामी के कारण ही सांची जैसी ऐतिहासिक सहकारी संस्था के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है! यह केवल एक संस्था का नहीं, बल्कि लाखों दुग्ध उत्पादक किसानों के भविष्य का प्रश्न है।
आपसे आग्रह है कि –
- सांची डेयरी की वर्तमान स्थिति की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित की जाए।
- इंदौर समेत सभी जिलों में सांची पार्लरों की लंबित फाइलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने का निर्देश दें।
- दूध संकलन, मूल्य निर्धारण और वितरण तंत्र को पारदर्शी और किसान-हितैषी बनाने के लिए NDDB की भूमिका की समीक्षा करें।
- राज्य सरकार से जवाब मांगा जाए कि आपकी घोषणा के बाद भी ज़मीनी स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ। मैं यह भी जरूर कहना चाहूंगा कि अगर सहकारिता की मूल भावना को जिंदा रखना है, तो सांची को बचाना ही होगा! अन्यथा यह साबित हो जाएगा कि मोदी सरकार की नीतियों का किसानों और उनके जीवन सुधार से कोई लेना-देना नहीं है !
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