गया। जिले का पटवा टोली अपने कपड़े बनाने के उद्योग के लिए मशहूर है, इसलिए इसे “मैनचेस्टर ऑफ बिहार” कहा जाता है। यहां गमछा, साड़ी, बेडशीट और धोती जैसे कपड़े बड़े पैमाने पर बनते हैं और पूरे देश में भेजे जाते हैं। हालांकि पटवा टोली पहले वस्त्र उद्योग के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह “आईआईटी का गांव” भी बन गया है क्योंकि यहां के कई बच्चे इंजीनियरिंग की सबसे प्रतिष्ठित संस्था आईआईटी में दाखिला पाते हैं।
कपड़े से कैरियर तक
पटवा टोली में अब लगभग 10 हजार पावर लूम और 300 से अधिक हैंडलूम पर रोजाना कपड़े बनाए जाते हैं, जिससे करीब 30 हजार लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। लेकिन साथ ही, यहाँ के छात्र भी पढ़ाई में बहुत आगे बढ़े हैं। साल 1992 में जितेंद्र प्रसाद पटवा टोली के पहले छात्र थे जिनका चयन आईआईटी में हुआ। उनकी सफलता ने गांव के अन्य छात्रों को भी प्रेरित किया।
निशुल्क कोचिंग का बड़ा रोल
पटवा टोली में ‘वृक्ष बी द चेंज’ नामक एक संस्था बच्चों को मुफ्त कोचिंग देती है। इस कोचिंग की मदद से यहां के छात्रों ने लगातार सफलता हासिल की है। आज पटवा टोली से लगभग 200 छात्र आईआईटी में पढ़ रहे हैं, जबकि 500 से अधिक छात्र एनआईटी और अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में हैं। ये विद्यार्थी आगे जाकर गाँव के अन्य छात्रों की पढ़ाई में मदद भी करते हैं।
आईआईटी में चयन का रिकॉर्ड
पटवा टोली के छात्रों का आईआईटी में चयन लगातार बढ़ता जा रहा है। कुछ सालों में यहां से 1-2 छात्र आईआईटी में जाते थे, लेकिन हाल के वर्षों में यह संख्या 10 से 20 के बीच हो गई है। पिछले कुछ सालों में खासकर 2015 से लेकर 2025 तक हर साल दर्जनों छात्र आईआईटी में सफल हुए हैं, जो गांव की शिक्षा और मेहनत का उदाहरण है।
पटवा टोली के छात्रों का आईआईटी चयन
1992: 1 छात्र
1993: 1 छात्र
1997: 1 छात्र
1998: 3 छात्र
1999: 7 छात्र
2000: 2 छात्र
2001: 2 छात्र
2002: 3 छात्र
2003: 5 छात्र
2004: 6 छात्र
2005: 6 छात्र
2006: 8 छात्र
2007: 3 छात्र
2008: 3 छात्र
2009: 4 छात्र
2010: 4 छात्र
2011: 6 छात्र
2012: 7 छात्र
2013: 5 छात्र
2014: 8 छात्र
2015: 12 छात्र
2016: 11 छात्र
2017: 20 छात्र
2018: 5 छात्र
2019: 14 छात्र
2020: 18 छात्र
2021: 21 छात्र
2022: 14 छात्र
2023: 11 छात्र
2024: 18 छात्र
2025: 12 छात्र
पटवा टोली से हर साल लगातार आईआईटी में कई छात्र चयनित हो रहे हैं, जो इस गांव की शिक्षा और मेहनत का बड़ा प्रमाण है। 1992 से लेकर 2025 तक, पटवा टोली ने दर्जनों प्रतिभाशाली इंजीनियरिंग छात्र दिए हैं, जो बिहार और देश दोनों के लिए गर्व की बात है।
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