चार दिन पहले को इजरायल ने ईरान के सैन्य ठिकानों, परमाणु सुविधाओं और तेल-गैस संयंत्रों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इस हमले को “ऑपरेशन राइजिंग लायन” नाम दिया गया, जिसमें 200 से ज्यादा लड़ाकू विमानों ने हिस्सा लिया। इन हमलों में ईरान के चार वरिष्ठ सैन्य कमांडर, छह परमाणु वैज्ञानिक और 78 नागरिक मारे गए। इसके जवाब में ईरान ने भी ऑपरेशन ‘ट्रू प्रॉमिस 3’ शुरू कर दिया। इसके तहत उसने तेल अवीव और यरुशलम पर देर रात जबरदस्त मिसाइल अटैक कर दिया। ईरान ने इजरायल पर 150 मिसाइलें दागी। हालांकि, अधिकतम को एयर डिफेंस सिस्टम (आयरन डोम) द्वारा निष्क्रिय कर दिया गया। कुछ मिसाइलें इजरायल के कई इलाकों में जा गिरी। शुरू में जोश दिखाते हुए ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इजरायल को बर्बाद करने की कसम खाई, लेकिन थोड़े समय में ही ईरान का यह जोश ठंडा पद गया। अब खबर है कि, उसने रूस से मदद की गुहार लगाई है। खामेनेई दरअसल, इजराइल के आक्रामक रवैये को देखते हुए खुद को बचाने देश छोड़ने की फिराक में हैं। इसलिए उन्होंने अपनी निकासी के लिए रूस से मदद मांगी है।
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खामेनेई ने क्यों मानी हार ?
विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल ने हमले का समय इतनी चतुराई से चुना कि ईरान के प्रमुख सहयोगी, खासकर रूस, उसकी मदद नहीं कर पा रहा है। अन्य सहयोगी देश भी हिचकिचा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इजरायल के इस ऑपरेशन केहै। इजरायल ने ईरान पर हमले के लिए ऐसा समय चुना जब ईरान के सहयोगी देश अपनी-अपनी समस्याओं में उलझे हैं। यह रणनीति इजरायल को सैन्य और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर फायदा दे रही है।
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युद्धविराम की गुहार लगाई
रविवार सुबह-सुबह इजरायल ने एक बार फिर ईरान के रक्षा मंत्रालय से लेकर गैस फील्ड साइट पर ताबड़तोड़ हमले करते हुए दहला दिया। इजरायल के सटीक मिसाइल हमलों से गैस फील्ड साइट धधक उठी है और प्रोडक्शन रोक दिया गया है। इजरायल के इन हमलों ने ईरान को घुटनों पर ला दिया है। ईरान ने इजरायल पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के सामने युद्धविराम की गुहार लगाई है। ईरान के शीर्ष राजनयिक ने साफ संकेत दिया है कि अगर इजरायल अपने हमले रोकता है तो ईरान भी जवाबी कार्रवाई बंद कर देगा।
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सैन्य मदद नहीं कर सकता रूस
रूस, ईरान का सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी, इस समय यूक्रेन युद्ध में बुरी तरह फंसा है. 2022 से चल रहे इस युद्ध ने रूस की सैन्य और आर्थिक ताकत को कमजोर कर दिया है. रूस ने ईरान को S-300 और S-400 जैसी हवाई रक्षा प्रणालियां दी थीं, लेकिन वह अब न तो अतिरिक्त हथियार भेज सकता है. न ही सैन्य सहायता दे सकता है.
रूस की सेना को यूक्रेन में भारी नुकसान हुआ है. उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रही है. ऐसे में, ईरान के लिए सैन्य समर्थन देना रूस के लिए मुश्किल है. ईरान ने रूस को ड्रोन और मिसाइलें सप्लाई की थीं, जिससे रूस पर ईरान का उधार चढ़ा हुआ है. लेकिन रूस की मौजूदा स्थिति उसे जवाबी मदद देने से रोक रही है.
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चीन की तटस्थता
चीन ईरान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. उसका तेल खरीदता है. लेकिन चीन ने इस संघर्ष में तटस्थ रहने का फैसला किया है. वह इजरायल और अरब देशों के साथ भी व्यापार करता है, इसलिए वह खुलकर ईरान का पक्ष नहीं लेना चाहता.
चीन की अर्थव्यवस्था भी 2025 में मंदी का सामना कर रही है. वह वैश्विक तेल कीमतों में उछाल से बचना चाहता है, जो युद्ध बढ़ने से हो सकता है. इसलिए, वह ईरान को केवल कूटनीतिक समर्थन दे रहा है, सैन्य मदद नहीं.
अरब देशों की दूरी
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और अन्य खाड़ी देश (GCC) ईरान के साथ ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण संबंध रखते हैं. 2023 में सऊदी अरब और ईरान ने चीन की मध्यस्थता से संबंध सुधारने की कोशिश की, लेकिन ये देश इजरायल के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहे.
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