विक्रम मिश्र, लखनऊ. 15 मई से 15 जून तक उत्तर प्रदेश सरकार की तबादला नीति चल रही थी. नीति नियम और नियत का हवाला देकर सबकुछ ठीक होने का दावा भी किया जा रहा था. लेकिन अचानक भ्रष्टाचार और सिस्टम में सेंधमारी ने सब कुछ खोलकर रख दिया. दरअसल, उत्तर प्रदेश की तबादला नीति में अधिकारियो और मंत्रियों के साथ प्रमुख सचिव और विभागध्यक्षो में ठन जाने की खबर सामने आ रही है. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि बेसिक शिक्षा विभाग में 3 लाख रुपये दो मनचाही जगह पर नौकरी करो जैसा मामला भी आया है.
इसे लेकर विपक्षी दल अब सरकार पर जमकर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की बात करें तो सेशन जीरो करने के बाद भवानी सिंह खनगरौत को हटा कर वेटिंग में डाल दिया गया है. स्टाम्प पंजीयन मंत्री रविन्द्र जायसवाल के शिकायत के बाद तबादला नीति को समाप्त कर स्टाम्प पंजीयन विभाग में भ्र्ष्टाचार की जांच एसआईटी को सौप दिया गया है.
बता दें कि योगी सरकार की भ्र्ष्टाचार की जीरो टॉलरेंस की नीति पर अब सपा बसपा और कांग्रेस अब जमकर हमले कर रहे हैं. क्योंकि स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी ब्रजेश पाठक उपमुख्यमंत्री के पास है. उन्होंने तबादलों में हुई धांधली को लेकर सीएम से खुद ही इसकी शिकायत की थी. इसके साथ ही स्टाम्प मंत्री ने भी सीएम से मिलकर भ्रष्टाचार से अवगत करवाया.
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आखिर नियम स्पष्ट होने का बाद भी भ्रष्टाचार कैसे?
पूर्व राजनयिक और यूपी सरकार में मुख्य सचिव पद पर रहे एक अधिकारी ने नाम नही छापने की शर्त पर बताया कि नियम तो ठीक है लेकिन नियत सही नहीं है. क्योंकि नई तबादला नीति में कई झोल है. जिसमे की दाम्पत्य नीति, बीमारी या उपचार के लिए, विकलांगता, इसके अलावा स्थानिक कार्य दक्षता और समीक्षा शामिल होते है. असल मे में खेल की वजह यही कार्य दक्षता और समीक्षा ही इस भ्र्ष्टाचार की जननी है. उन्होंने कहा कि अधिकारी को ही सम्बंधित कर्मचारी का डेटा तैयार करना होता है बस कार्यदक्षता का हवाला देकर सारा खेल कर दिया जाता है.
बता दें कि तबादला नीति में सेंधमारी का कोई नया मामला नहीं है. पिछली सरकारों में भी ऐसा खेल होता रहा है. लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि योगी सरकार की स्पष्टता और जीरो टॉलरेंस की नीति के बाद भी यूपी के नौकरशाही इतनी बेलगाम हो चुकी है कि उनके लिए नियम कायदा कानून सब रुपया ही है.
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