हरीशचंद्र शर्मा, ओंकारेश्वर। भगवान ओंकारेश्वर 15 दिन के लिए मालवा भ्रमण पर रवाना हुए। परंपरा के अनुसार ज्योतिर्लिंग भगवान एक पखवाड़े के लिए मालवा भ्रमण रवाना हो गए। मंदिर ट्रस्ट के पंडित पुजारियों ने रविवार सुबह भगवान को मालवा रवाना करने से पहले सभी धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाए। गेहूं के आटे, शुद्ध घी, गुड़ का बना प्रसाद सुपडी का भोग लगाकर भगवान को सूक्ष्म रूप से मालवा के लिए रवाना किया।
23 नवंबर को खत्म होगी 15 दिन की यात्रा
पुरानी परंपरा को निभाते हुए श्री जी मंदिर संस्थान ने अभी भी इसे कायम रखा हुआ है। मंदिर ट्रस्ट प्रबंधक आशीष दीक्षित ने जानकारी देते हुए बताया कि, शनिवार कार्तिक शुक्ल पक्ष गोपाष्टमी पर मंदिर ट्रस्ट के द्वारा भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को सूक्ष्म रूप से रवाना किया गया है। जो वापस भैरव अष्टमी 23 नवंबर शनिवार को 15 दिन की यात्रा करने के बाद लौटेंगे। सहायक मुख्य कार्यपालन अधिकारी अशोक महाजन ने बताया कि, प्राचीन समय से मान्यता है कि ओंकारेश्वर महाराज मालवा के भक्तों को दर्शन देने के लिए 15 दिनों की मालवा यात्रा करते थे। इस परंपरा को जब कायम किया गया उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि सभी लोग भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने ओंकारेश्वर पहुंच सके। इसलिए यह परंपरा शुरू की गई थी। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ होते गए बदलाव के बाद भी मंदिर ट्रस्ट ने इसे अभी भी कायम रखा हुआ है।
भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पुजारी पंडित डंकेश्वर दीक्षित ने बताया कि 15 दिनों तक भगवान का रात्रि शयन नहीं होगा। पूर्व में ओंकार जी महाराज पालकी में सवार होकर ओंकारेश्वर से मालवा भ्रमण लाव लश्कर एवं गाजे-बाजे के साथ रवाना होते थे। साथ में पुजारी सेवक नगाड़े ढोल ढमाके के साथ रहते थे। गांव-गांव जाकर भक्तों से मिलते थे। रात्रि में गांव में विश्राम करते समय भक्त सारी व्यवस्था करते थे।
गांव के भक्त किसानों ने कृषि भूमि भी ओंकारजी महाराज के लिए मंदिर को दान दी थी। जो मंदिर ट्रस्ट के नाम से दर्ज है। भगवान के मालवा जाने को लेकर यह प्रमाणित करता है कि अनेक स्थानों पर इंदौर, उज्जैन संभाग खंडवा जिले में लोगों ने भगवान को जमीन दान की है। जो आज भी मंदिर ट्रस्ट के नाम पर है। धीरे-धीरे समय बदलता गया परंपराएं सीमित होती गई। लेकिन उसे आज भी मंदिर ट्रस्ट ने कायम रखा हुआ है। भगवान मालवा तो जाते ही हैं लेकिन समय के परिवर्तन के साथ अब पालकी नहीं जाती है।
पुरानी परंपराओं के अनुसार, कार्तिक माह की अष्टमी से भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मालवा में भक्तों को दर्शन देने गए हैं। इसलिए किसी भी प्रकार के कोई बड़ा कार्यक्रम मंदिर में नहीं होता है। सभी धार्मिक अनुष्ठान सूक्ष्म रूप से किए जाते हैं। शाम की आरती के समय भगवान को लगने वाला शयन नहीं होता है। चौपड़ पासे भी नहीं बिछाए जाते हैं। तीनों पहर की आरती मंदिर के तीन काल के पुजारी संपन्न करवाते हैं। भगवान भैरव अष्टमी पर 15 दिन की यात्रा कर पुनः वापस मंदिर में लौटते हैं , फिर सभी कार्यक्रम शुरू होते हैं।
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