शिवम मिश्रा, रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कारपोरेशन (CGMSC) में करोड़ों रुपये के घोटाले की जांच ACB/EOW ने तेज कर दी है. सीजीएमएससी घोटाला मामले की कथित तौर पर लिप्त अधिकारियों को ईओडब्ल्यू-एसीबी ने पूछताछ के लिए तलब किया है. खबर आ रही है कि सीजीएमएससी की जीएम फाइनेंस मीनाक्षी गौतम, बायोमेडिकल इंजीनियर क्षिरौंद्र रावटिया, जीएम टेक्निकल इक्विपमेंट कमलकांत पाटनवार और टेंडर एंड परचेसिंग ऑफिसर अभिमन्यु सिंह से ईओडब्ल्यू-एसीबी की पूछताछ चल रही है.

ACB/EOW ने कल देर रात तक बसंत कौशिक को पूछताछ के लिए तलब किया था. उन्हें तीन दिन का समय देकर दस्तावेजों के साथ फिर से दफ्तर बुलाया है. मोक्षित कारपोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर है. आरोपी के सामने अधिकारियों को बैठाकर ACB/EOW की टीम पूछताछ कर रही है. मामले में अधिकारियों का बयान दर्ज किया जा रहा है. इस घोटाले के संबंध में अन्य अधिकारियों को तलब कर सकती है.

स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते है कि इस मामले में डीएचएस में पदस्थ एक स्टॉफ भी जांच के दायरे में है. इस स्टॉफ का काम ये होता था मोक्षित कार्पोरेशन के पास मौजूद उपकरण और दवाईयों का ऑर्डर दिलवाने के लिए डॉक्टरों को संपर्क करती थी और उन्हें इसे डिमांड करने के लिए कहती थी. हालांकि इसकी जानकारी अब तक कार्रवाई करने वाली टीम तक नहीं पहुंची है.

लल्लूराम डॉट कॉम ने उजागर किया था भ्रष्टाचार

बता दें कि कांग्रेस शासनकाल में स्वास्थ्य विभाग के CGMSC ने मोक्षित कॉरपोरेशन के माध्यम से छत्तीसगढ़ की राजकोष को किस तरह से खाली किया है ये महज दो साल की ‘ऑडिट ऑब्जर्वेशन रिपोर्ट’ में सामने आया था. ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक करोड़ों की गड़बड़ी की गई है. इस पूरे मामले को लल्लूराम डॉट कॉम ने उजागर किया था. इस पूरे मामले को लेकर 660 करोड़ रुपए के गोल-माल को लेकर भारतीय लेखा एंव लेखापरीक्षा विभाग के प्रिंसिपल अकाउंटेंट जनरल (ऑडिट) आईएएस यशवंत कुमार ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगआ को पत्र लिखा था.

दो साल के ऑडिट में खुली थी पोल

लेखा परीक्षा की टीम की ओर से CGMSC की सप्लाई दवा और उपकरण को लेकर वित्त वर्ष 2022-24 और 2023-24 के दस्तावेज को खंगाला गया तो कंपनी ने बिना बजट आवंटन के 660 करोड़ रुपये की खरीदी की थी, जिसे ऑडिट टीम ने पकड़ लिया था. ऑडिट में पाया गया है कि पिछले दो सालों में आवश्यकता से ज्यादा खरीदे केमिकल और उपकरण को खपाने के चक्कर में नियम कानून को भी दरकिनार किया गया. जिस हॉस्पिटल में जिस केमिकल और मशीन की जरूरत नहीं वहां भी सप्लाई कर दिया गया. प्रदेश के 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों सप्लाई की गई, जिनमें से 350 से अधिक ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं, जिसमें कोई तकनीकी, जनशक्ति और भंडारण सुविधा उपलब्ध ही नहीं थी. ऑडिट टीम के अनुसार DHS ने स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं में बेसलाइन सर्वेक्षण और अंतर विश्लेषण किए बिना ही उपकरणों और रीएजेंट मांग पत्र जारी किया था.

स्वास्थ्य महकमे के अधिकारियों के खिलाफ भी दर्ज है मामला

ईओडब्ल्यू ने अपनी एफआईआर में स्वास्थ्य महकमे के आला अधिकारियों के खिलाफ भी अपराध दर्ज किया है. एफआईआर में स्वास्थ्य संचालक और सीजीएमएससी की एमडी पर गंभीर टिप्पणी की गई है. इस एफआईआर के बाद यह माना जा रहा है कि जांच की जद में कई आला अफसर आ सकते हैं. चर्चा है कि इस घोटाले में शामिल रहे लोगों की जल्द गिरफ्तारियां होंगी. ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में यह तथ्य भी सामने आया है कि अफसरों की मिलीभगत से सरकार को अरबों रुपए की चपत लगाई गई.