यत्नेश सेन, देपालपुर। Holi 2025: देशभर में होलिका दहन के लिए आग जलाने की व्यवस्था माचिस या लाइटर से की जाती है। लेकिन मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के देपालपुर में आज भी आदिकाल की परंपरा ही निभाई जाती है।

धाकड़ सेरी मोहल्ले में चकमक पत्थरों की मदद से आदिमानव की तरह आग पैदा कर होलिका का दहन किया जाता है। इस काम को नगर पटेल रामकिशन धाकड़ (पटेल)अंजाम देते हैं। धाकड़ परिवार 9 पीढ़ियों से होलिका दहन करते आ रहे हैं।

नगर के वार्ड क्रमांक 1 धाकड़ सेरी में श्रीराम मंदिर के सामने सालों से चकमक पत्थर से होलिका जलाई जाती है। वर्तमान में यहां के निवासी रामकिशन पटेल (68 वर्षीय) अपने घर से चकमक पत्थर रूई में लपेटकर लाते हैं और उसे लोहे से रगड़ते हैं। इससे आग उत्पन्न होती है और रूई जलने लगती है। इस जलती हुई रूई से ही होली के चारे में आग लगाकर होलिका दहन किया जाता है। धाकड़ पटेल परिवार यह काम पीढ़ियों से करता चला आ रहा है।

रामकिशन पटेल बताते हैं कि पहले पिताजी दयाराम पटेल, दादाजी  पुनाजी पटेल, परदादा भेरा पटेल और इससे भी पहले से हमारा परिवार यह परंपरा निभाता चला आ रहा है। 

हीरे की तरह संभाल रखा है चकमक पत्थर 

नागर ने बताया कि उन्होंने चकमक पत्थर एक बॉक्स में संभाल कर रखा है। जिसे साल में एक बार होली पर ही निकाला जाता है।

क्या है चकमक पत्थर?

प्राचीन काल में आदिमानव इसका उपयोग आग जलाने के लिए करते थे। यह समुद्र किनारे पाया जाता है। एक कठोर तलछटी चट्टान होती है। यह एक माइक्रोक्रिस्टलाइन क्वार्ट्ज का रूप होता है। 

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