देश की शीर्ष अदालत ने माना है कि, किसी को डांटना उसे सुसाइड के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। जिसमें हॉस्टल वार्डन को स्टूडेंट को सुसाइड के लिए उकसाने का दोषी माना था। वार्डेन को IPC की धारी 306 के तहत आरोपी माना गया था। दरअसल, वार्डन ने एक स्टूडेंट की शिकायत पर एक अन्य स्टूडेंट को डांट लगाई थी। जिसके बाद छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की डिवीजन बेंच ने कहा कि- कोई यह नहीं सोच भी नहीं सकता कि सिर्फ डांटने से ऐसी घटना हो सकती है।

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वार्डेन की ओर से क्या कहा गया ?

वार्डन का तर्क था कि उसने पैरेंट के तौर पर स्टूडेंट को डांटा था, जिससे वो आगे से गलती न करे। वार्डन ने कहा था कि उसके और सुसाइड करने वाले स्टूडेंट के बीच कोई निजी संबंध नहीं था।

दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यक्ति पर किसी की आत्महत्या के लिए उकसाने का दोष तभी लगाया जा सकता है, जब इसका पुख्ता सबूत हो। सिर्फ प्रताड़ना का आरोप इसके लिए काफी नहीं है।

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वर्ष 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ऐसा ही फैसला

गौरतलब है कि, वर्ष 2021 में भी शीर्ष अदालत ने ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि बार-बार अनुशासनहीनता पर विद्यार्थी को फटकार लगाना, उसकी हरकत को अभिभावकों की नजर में लाना, एक शिक्षक की जिम्मेदारी है। वह ऐसा अपने विद्यार्थी के उज्ज्वल भविष्य के लिए करता है। अगर इससे तंग आकर कोई छात्र आत्महत्या कर ले तो इसमें शिक्षक को उसे उकसाने के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।

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