कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर के जीवाजी विश्विद्यालय के फर्जीवाडे से जुड़ी याचिका पर हाइकोर्ट में अहम सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने कहा कि “जीवाजी विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच के लिए क्यों न SIT का गठन किया जाए। कोर्ट ने ईओडब्ल्यू सहित शासन से इस मामले में 4 सप्ताह में जवाब तलब किया है।

दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ ग्वालियर में झुंडपुरा मुरैना के एक फर्जी कॉलेज के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें ईओडब्ल्यू की ओर से जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलपति सहित 17 प्रोफेसर के खिलाफ FIR दर्ज की गई। इस मामले में हाईकोर्ट ने जीवाजी विश्वविद्यालय सहित ईओडब्ल्यू को आदेशित किया कि सभी मामलों में व्यापक जांच कर दोषी व्यक्तियों को चिन्हित किया जाए और जल्द से जल्द उनके विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किए जाएं।

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याचिका के जरिये हाइकोर्ट में तर्क दिया कि 100 फर्जी कॉलेजों की सूची याचिकाकर्ता ने जीवाजी विश्वविद्यालय सहित ईओडब्ल्यू को सुपुर्द की, फिर भी eow और जीवाजी विश्वविद्यालय इन कॉलेजों के विरुद्ध कोई भी करवाई नहीं कर रही और न हीं उनके पास पर्याप्त साधन है। ईओडब्ल्यू का एक विवेचना अधिकारी पूरे मामले की जांच कर रहा है उससे उम्मीद नहीं की जा सकती कि इतने बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार की विवेचना वह जल्द पूरी कर पाएगा।

इसलिए इन कॉलेजो में व्याप्त संपूर्ण भ्रष्टाचार की जांच हाईकोर्ट अपनी निगरानी में कराए और इसके लिए ईओडब्ल्यू विभाग में एक SIT का गठन किया जाए, जिसमें आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में कम से कम 21 सदस्य डीएसपी और 21 इंस्पेक्टर लेवल के अधिकारियों को सम्मिलित किया जाए। महीने की प्रत्येक तय तारीख पर जीवाजी विश्वविद्यालय और ईओडब्ल्यू से मामले की प्रोग्रेस रिपोर्ट ली जाकर विधिवत् सुपरविजन किया जाए।

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इस मामले की जल्द जांच कर दोषी व्यक्तियों के विरुद्ध सक्षम न्यायालय में चालान प्रस्तुत कराया जाए। इन तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट इस बात से पूर्णतः सहमत था कि इतने बड़े भ्रष्टाचार की जांच एक या दो अधिकारियों से जल्द पूरी नहीं कराई जा सकती। इसके लिए SIT आवश्यक है। हाईकोर्ट ने इस मामले में गृह मंत्रालय के प्रमुख सचिव सहित डीजीपी और ईओडब्ल्यू के एसपी सहित जीवाजी विश्वविद्यालय के कुल सचिव को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब पेश करने का आदेश दिया है।

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