हम रोज पूजा में सामग्री अर्पित करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बाएं हाथ से देने की मनाही क्यों होती है? यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि शास्त्रों, मानसिकता और सामाजिक व्यवहार से जुड़ी गहराई से सोच समझी गई परंपरा है. आइए जानें इसके पीछे छिपे कारण — धार्मिक, मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण से.
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पूजा में हमेशा दाहिने हाथ से ही क्यों चढ़ाई जाती है सामग्री?
सनातन परंपरा में दाहिना हाथ शुभ माना गया है.
देवताओं को जल, फूल, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करने के लिए दक्षिण यानी दाहिने हाथ का ही प्रयोग किया जाता है. इसे “कर्म हाथ” भी कहा जाता है, यानी सत्कर्मों और पुण्य कार्यों के लिए यह हाथ विशेष रूप से उपयुक्त माना गया है.
बायां हाथ रोज़मर्रा के निजी कार्यों से जुड़ा होता है, जैसे साफ-सफाई, भोजन परोसना आदि. इसी कारण इसे पूजा जैसे पवित्र कार्यों में उपयोग में नहीं लाया जाता.
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शास्त्रों में भी स्पष्ट निर्देश हैं कि कोई भी पवित्र वस्तु — चाहे वह तुलसी पत्र हो, दीपक हो या प्रसाद — उसे दाहिने हाथ से ही अर्पित करना चाहिए. इससे श्रद्धा, मर्यादा और शुद्धता की भावना बनी रहती है.
हालांकि, यदि कोई व्यक्ति जन्म से बायां हाथ इस्तेमाल करता है या किसी प्रकार की शारीरिक बाध्यता है, तो उस स्थिति में भावना और श्रद्धा को प्राथमिकता दी जाती है.
देवता हमारी भावना को स्वीकार करते हैं, लेकिन परंपराएं हमें अनुशासन और संयम का पाठ पढ़ाती हैं.
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