Supreme Court on Marital Rape: केंद्र की मोदी सरकार (modi government) ने वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) को अपराध नहीं मानती है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके लिए अन्य “उपयुक्त दंडात्मक उपाय” मौजूद हैं। केंद्र ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा कानूनी मुद्दे से ज़्यादा सामाजिक मुद्दा है, क्योंकि इसका समाज पर सीधा असर होगा।

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बता दें कि शीर्ष न्यायालय वर्तमान में वैवाहिक बलात्कार मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता से संबंधित वैवाहिक बलात्कार मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

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केंद्र ने कहा कि इस मुद्दे (वैवाहिक बलात्कार) पर सभी हितधारकों के साथ उचित परामर्श के बिना या सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखे बिना फैसला नहीं किया जा सकता। केंद्र ने माना कि केवल विवाह भर से महिला की सहमति लेना खत्म नहीं हो जाता है और किसी भी तरह के उल्लंघन का नतीजा दंडात्मक होना चाहिए। हालांकि, केंद्र ने यह भी कहा कि शादी के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम शादी के बाहर होने वाले उल्लंघन से अलग होते हैं। केंद्र ने कहा कि शादी में पति-पत्नी के बीच उचित यौन संबंधों की निरंतर अपेक्षा होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पति को पत्नी की इच्छा के खिलाफ जबरन संबंध बनाने का अधिकार मिल जाता है। केंद्र ने कहा कि ऐसे कृत्य के लिए दंडात्मक कानूनों के तहत पति को दंडित करना अत्यधिक और अनुपातहीन हो सकता है।

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महिला की सहमति के लिए पहले ही बनाए हैं कानून

केंद्र ने कहा कि संसद पहले ही ऐसी व्यवस्था कर चुकी है जो शादी के भीतर महिला की सहमति की रक्षा करती है। इन उपायों में शादीशुदा महिलाओं के साथ क्रूरता को दंडित करने वाले कानून शामिल हैं। इसके अलावा, महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को मदद प्रदान करने के लिए मौजूद है।

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दिल्ली हाईकोर्ट खारिज कर चुकी है याचिका

बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने इस प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था। जबकि न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने इसे बरकरार रखा था। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 23 मार्च के फैसले पर भी रोक लगा दी थी, जिसमें बलात्कार करने और अपनी पत्नी से जबरन संबंध बनाने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत लगाए गए बलात्कार के आरोप को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था।

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