धर्मेंद्र ओझा, भिंड। मध्य प्रदेश के भिंड जिले से महज 70 किलोमीटर दूरी पर लहार तहसील के दबोह कस्बे से 2 किमी की दूरी पर अमाहा गांव में विराजी मां रेहकोला देवी का मंदिर एक हजार शताब्दी पुराना है। कहा जाता है की 11वीं शताब्दी में बुंदेलखंड के वीर योद्धा आल्हा-उदल के चचेरे भाई मलखान पर हिंगलाज देवी की कृपा थी। मलखान पाकिस्तान से माता को अपने साथ लेकर आए थे।

रणकौशला देवी का इतिहास

सनातन धर्म में मान्यता है कि, जब राजा दक्ष के भगवान को अपमान करने के बाद माता सती हुई थी। तब भगवान शिव दुखी होकर उनके शरीर को हाथों में लिए पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे। तभी माता सती के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे और उन स्थानों पर मां जगदम्बा के आदिशक्ति शक्तिपीठ बने हैं। उन्हीं शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ को पाकिस्तान के हिंगलाज माता मंदिर से जाना जाता है। हिंगलाज शक्ति पीठ को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस शक्ति पीठ पर माता सती का सिर गिरा था। यहां की मान्यता यह है कि मां जगदम्बा जिसे अपने पास बुलाती थी वही भक्त मां के शक्ति पीठ पर पंहुच पाता था।

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मलखान की मां थी हिंगलाज की बहुत बड़ी उपासक

बुलेदखंड के वीर मलखान की माता तिलका देवी मां हिंगलाज की बहुत बड़ी उपासक थी और वह मां के दर्शन करना चाहतीं थी। लेकिन मां जगदम्बा ने उन्हें कभी अपने पास नहीं बुलाया। क्योंकि वहां जाने के लिए मान्यता थी कि हिंगलाज मंदिर में जो भक्त मां जगदम्बा के दर्शन करने जाता था उसे पहले मां जगदम्बा के बाहर बने कुण्ड में फूल और नारियल अर्पित करना होता था। कुण्ड में जो भक्त फूल नारियल चढाता है और यदि वह कुण्ड के ऊपर आ जाता तो उसे यह समझा जाता था कि हिंगलाज मंदिर में विराजी मां जगदम्बा उसे अपने दर्शन करने के लिए बुला रही है।

एक बार वीर मलखान अपनी माता पुतली के साथ हिंगलाज के दर्शन करने के लिए गए थे। जब उन्होंने अपनी मां के साथ कुण्ड में फूल व नारियल अर्पित किए। तो उस समय वीर मलखान की माता तिलका देवी द्वारा अर्पित फूल नारियल कुण्ड के ऊपर नहीं आए। लेकिन वीर मलखान सिंह के द्वारा अर्पित फूल नारियल कुण्ड में चढ़ाए जाने के बाद ऊपर आ गाय। मां जगदम्बा का संकेतित आदेश प्राप्त कर वीर मलखान ने मां जगदम्बा के दर्शन किए तो मां जगदम्बा ने वीर मलखान को साक्षात प्रकट होकर दर्शन दिए।

इस पर वीर मलखान सिंह ने मां जगदम्बा को अपने साथ सिरसा गढ चलने का आग्रह किया। मां जगदम्बा वीर मलखान का आग्रह ठुकरा नहीं सकी और वह वीर मलखान सिंह के साथ चलने के लिए तैयार हो गई। लेकिन मां जगदम्बा ने वीर मलखान सिंह के साथ चलने से पहले एक वचन लिया कि और कहा कि मैं तुम्हारे साथ तो चल रहीं हूं मगर मैं तुम्हारे कंधे पर विराजमान होकर चंलूगी और तुम मुझे जिस स्थान पर बैठा देगो, मैं वही विराजमान हो जांऊगी।

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मलखान सिंह ने किए दर्शन


इस प्रकार वीर मलखान सिंह अपनी माता तिलका देवी के साथ मां जगदम्बा को पाकिस्तान के हिंगलाज से लेकर सिरसा गढ की रियासत में लेकर आए। लेकिन सिरसा गढ़ पंहुचने से पहले महज छ: किलोमीटर की दुरी पर वीर मलखान सिंह के गुरु गोरखनाथ आ पंहुचे और उन्होंने वीर मलखान से मां जगदम्बा के दर्शन करने का आग्रह किया। गुरु गोरखनाथ की दर्शन इच्छा पूर्ति के लिए वीर मलखान सिंह ने जैसे ही मां जगदम्बा को उतारा तो वह उस स्थान पर उनके कंधे से उतरी वह वहां विराजमान हो गई। यही जगह आज अमाहा नाम से जाना जाती है।

मां के भव्य स्वरूप को किया विराजित


इसके बाद अमाहा के धरा पर वीर मलखान ने मंदिर बनवाकर अपनी पत्नी गजमोतिन के साथ मां जगदम्बा की प्राणप्रतिष्ठा कर मां के भव्य स्वरूप को विराजित करवाया। वीर मलखान सिंह मां जगदम्बा के अनन्य उपासक थे और मां जगदम्बा भी वीर मलखान सिंह को अपने पुत्र जैसा स्नेह करती थी। जब भी वीर मलखान मां जगदम्बा के दर्शन करने जातें तो मां जगदम्बा नींद से जागकर भी उन्हें दर्शन देतीं थी। मां जगदम्बा वीर मलखान से इतनी प्रसन्न रहतीं थी कि वीर मलखान जब जब जहां कंही किसी भी युद्ध के लिए रणभूमि में जातें थे तो वह मां जगदम्बा का आशीर्वाद लेने जाते। मां जगदम्बा स्वयं उन्हें अपनी तलवार भेट कर विजय श्री का आशीर्वाद प्रदान करतीं थीं।

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वीर मलखान को युद्ध से पहले मां देती थी आशीर्वाद


इस तरह वीर मलखान की हर रण में सदैव मां जगदम्बा की कृपा से सदैव विजय प्राप्त होती थी। एक बार दिल्ली के शासक के रूप में पृथ्वीराज चौहान ने वीर मलखान को युद्ध में रण करने की चुनौती दी थी। लेकिन मां रणकौशिला देवी के आशीर्वाद के चलते पृथ्वीराज चौहान को यहां वीर मलखान से शिखस्त खानी पड़ी थी। वीर मलखान ने उन्हें कैद कर लिया था। मगर अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर उन्हें अभयदान दे दिया। जिसका दंश और मलाल जीवन भर पृथ्वीराज चौहान को रहा। हर युद्ध में जीत दिलाने वाली मां जगदम्बा को वीर मलखान मां रणकौशला देवी के नाम से पुकारते थे। इसलिए यहां विराजी मां जगदम्बा का नाम रणकौशिला देवी से जाना जाता है। वह इसी नाम से मां जगदम्बा विश्व में प्रख्यात हुई।

ब्रह्ममुहूर्त में माता रणकौशला देवी के दर्शन


अमाहा स्थित मां रणकौशला मंदिर के पूर्व दिशा में 4 किलोमीटर दूरी पर पंहुज नदी के किनारे सिरसा रियासत की प्राचीन ग़ढियों के भग्राशेष मिले हैं। जिसे पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित कर दिए है।
मां रणकौशल देवी मंदिर पर एक बाबडी है।।जिसमें माना जाता है कि यह एक अदृश्य भूमिगत सुरंग है। जिसका एक द्वार मां रणकौशला मंदिर की ओर तो दुसरा द्वार सिरसा रियासत की गढ़ी के महल में खुलता है। यही से एक अदृश्य गुप्त सुंरग है। जिसमें से होकर नियमित वीर मलखान सपत्नीक गजमोतिन के साथ ब्रह्ममुहूर्त में माता रणकौशला देवी के दर्शन करने के लिए आते जातें थे।

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आज भी आते हैं वीर मलखान


आज भी यह मान्यता प्रचलन में है कि वीर मलखान सिंह का सुक्ष्म शरीर बह्ममहुर्त में मां जगदम्बा के समक्ष सर्वप्रथम आते हैं और मां रणकौशला देवी प्रथम दर्शन वीर मलखान सिंह को देतीं हैं। यही कारण है यहां पुजारी द्वारा मंदिर के पट खोलते ही मंदिर की दहलीज पर पूजा-अर्चना कर जल व फूल चढ़े आज भी मिलते हैं। बहुत से शोधकर्ताओं ने यहां इस रहस्य को खोजने की काफी कोशिश की मगर उन्हें हमेशा सिर्फ निराशा ही हाथ लगीं।

चंदेल काल में हुआ था मां रणकौशला मंदिर निर्माण यही कारण है मां जगदम्बा की दहलीज पर पूजा पुष्प के साक्ष्य मिलने से यहां मान्यता को सदैव बल मिलता रहा है। रणकौशिला मंदिर पर अदृश्य शक्ति द्वारा पूजा-अर्चना को लेकर रहस्य सदियों से आज बना हुआ है। मां रणकौशला देवी मंदिर का निर्माण चंदेल काल के 15वीं सदी का माना जाता है। लेकिन सन 1998 में श्रीनगर के कारीगरों द्वारा मंदिर प्रबंधन को आकर बताया गया कि, मां ने सपने में स्वप्न देकर उन्हें स्वयं का भव्य स्वरूप प्रदान करवाने के लिए आदेशित किया है। और श्रीनगर से आए कारीगरों द्वारा मंदिर प्रबंधन के सहयोग से मां जगदम्बा के स्वरूप को अष्टधातु व स्वर्ण मे परिवर्तित किया गया तो मां जगदम्बा की मनमोहक छवि पाकिस्तान के हिंगलाज के शक्ति पीठ में विराजी छवि जैसी प्रतीक होने लगी।

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श्रद्धा से पूजा करने पर मां करती हर मनोकामना पूरी


मां रणकौशला देवी को स्थानीय लोग रेहकोला देवी के नाम से भी पूजते है। माता का यह सिद्धदात्री स्वरूप है। वो शत्रु पर विजय दिलाने के साथ ही हर मनोकामना पूरी करती है। सबसे ज्यादा लोग माता से संतान प्राप्त की इच्छा के साथ आते है। मां की कृपा से गोद हरीभरी होने पर पालना चढ़ाने का रिवाज है। इसके अलावा यहां लोगों की मनोकामना पूरी होने पर जवारे, श्रृांग चढ़ाई जाती है। यहां पूजा-अर्चना के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।

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