पुरी। गरीबी की आग में तपकर, अभावों की बेड़ियों को तोड़कर, ओडिशा के जिंदगी फाउंडेशन के 20 छात्रों ने नीट 2025 पास कर उदाहरण पेश किया है. इनकी सफलता इसलिए भी अहम है, क्योंकि ये वो बच्चे हैं, जिनके परिवार दो वक्त की रोटी के लिए जूझते हैं. इनके सपनों पर हालात ने ताले जड़े, मगर हौसले ने हर ताला खोल दिया. हम बता रहे हैं आपको बच्चों की कहानी…

रोशनी कम पर रहे हमेशा टॉपर

कृष्णा नगरपट्टना के रघुनाथ बेहरा के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. रघुनाथ की आंखों में गंभीर समस्या है, जिससे वे ब्लैकबोर्ड तक ठीक से नहीं देख पाते थे इलाज का खर्च उठाना भी संभव नहीं था. इसके बावजूद उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और हमेशा क्लास में टॉप किया. डॉक्टर बनने का सपना लेकर उन्होंने नीट की तैयारी की और दिव्यांग श्रेणी में देशभर में तीसरा स्थान हासिल किया.

दादी की मौत ने झकझोरा

बसीरा गांव के जयंत प्रधान के पिता टेम्पो चलाते हैं. 8 हजार महीना कमाई होती है. दादी की मौत इलाज के अभाव में हो गई थी. उस सदमे ने जयंत के मन में डॉक्टर बनने की जिद जगा दी. (542 अंक)

किताबों का बनाया हथियार

नयागढ़ के गांव की सोनाली राउत के पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. समाज की सोच थी कि बेटी को पढ़ाने के बजाय ब्याह दिया जाए. सोनाली ने इस सोच को धता बताया. किताबों को हथियार बनाया. (523 अंक)

चाय की दुकान पर लिखी सफलता की रेसेपी

भुवनेश्वर के सूर्यस्नाता के पिता सड़क किनारे चाय की गुमठी चलाते हैं. 6000-7000 रुपए महीने की आमदनी में परिवार का गुजारा बमुश्किल होता है, पर सूर्यस्नाता की पढ़ाई के लिए परिवार ने सबकुछ झोंक दिया. उनका त्याग और मेहनत रंग लाए. चाय की दुकान पर मदद करने वाला बच्चा अब जिंदगियां बचाने का सपना साकार करने जा रहा है. (502 अंक)

फाउंडेशन का मिशन

फाउंडेशन प्रमुख अजय बहादुर सिंह ने कहा, ‘ये छात्र बेहद कठिन हालात से गुजरे हैं, सही मार्गदर्शन व मजबूत इच्छाशक्ति के बूते ये सफल हो पाए.’ दरअसल, पिता की बीमारी के चलते अजय ने पढ़ाई छोड़कर चाय बेचना शुरू कर दिया था. इसलिए वे कमजोर वर्ग के बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं.