भारत में एक ऐसा राज्य है जहां के पोलिकवे महानिदेशक यानि DGP बिना वेतन के अपनी नौकरी कर रहे हैं। केंद्र सर्कार ने उनकी वेतन रोक दी है, लेकिन अधिकारी अभी भी राज्य सरकार के प्रति अपनी वफादारी साबित करने अपना फर्ज निभा रहे है। आलम यह है कि, केंद्र के इस फैसले को लेकर उस राज्य के मुख्यमंत्री खुद मोदी सरकार से जा भिड़े हैं। दरअसल, यह पूरा माममल झारखंड का है जहां के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की केंद्र सरकार से राज्य के डीजीपी को लेकर ठन गई है। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाकर हेमंत सोरेन ने सीधे केंद्र से लड़ाई मोल ले ली है। अनुराग गुप्ता को रिटायरमेंट के बाद भी डीजीपी पद बनाए रखकर हेमंत सोरेन ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सीधे-सीधे चुनौती दे दी है।
वहीं, केंद्र कहता है कि गुप्ता 30 अप्रैल 2025 को रिटायर हो चुके, फिर डीजीपी की कुर्सी पर कैसे काबिज हैं? दूसरी तरफ, हेमंत सरकार गुप्ता को हटाने के मूड में नहीं। ये सियासी जंग अब कोर्ट तक पहुंच चुकी है। आखिर माजरा क्या है? क्या हेमंत सोरेन 90 के दशक में बिहार के लालू यादव वाला दांव खेला है? क्या हेमंत का यह दांव कामयाब होगा या बिहार के लालू यादव के जमाने की तरह विवादों में फंस जाएगा?
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रिटायर होने के बाद भी नौकरी जारी
अनुराग गुप्ता 1990 बैच के झारखंड कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। जुलाई 2024 में हेमंत सरकार ने कार्यवाहक डीजीपी बनाया। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने उन्हें हटा दिया। नवंबर 2024 में हेमंत सोरेन की वापसी हुई और गुप्ता फिर डीजीपी की कुर्सी पर लौट आए। सब ठीक चल रहा था, तभी 30 अप्रैल 2025 को गुप्ता की उम्र 60 साल हो गई। केंद्र सरकार ने कहा नियम है कि 60 की उम्र में आईपीएस अधिकारी रिटायर हो जाते हैं। लेकिन हेमंत सोरेन ने रिटायर नहीं किया। केंद्र ने 22 अप्रैल को झारखंड को चिट्ठी लिखी कि गुप्ता को हटाओ, लेकिन हेमंत सरकार ने टस से मस नहीं हुए।
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केंद्र ने रोक दी है वेतन
बल्कि, झारखंड की हेमंत सरकार ने तो 8 जनवरी 2025 को नया नियम बना डाला, जिसमें डीजीपी चुनने के लिए यूपीएससी की सलाह को छोड़कर एक राज्य कमेटी बना दी. केंद्र ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2006 के प्रकाश सिंह फैसले का उल्लंघन बताया, जिसमें कहा गया था कि डीजीपी की नियुक्ति यूपीएससी के तीन अधिकारियों के पैनल से होनी चाहिए और उन्हें कम से कम दो साल का कार्यकाल मिलना चाहिए. हेमंत सरकार का दावा है कि उनका नियम सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक है और गुप्ता को फरवरी 2025 से दो साल का टर्म दिया गया. लेकिन केंद्र ने तीन बार चिट्ठी लिखकर गुप्ता को हटाने को कहा.
अब तो हाल ये है कि झारखंड के लेखा विभाग ने गुप्ता का वेतन रोक दिया, क्योंकि उनके रिकॉर्ड में रिटायरमेंट दर्ज है। फिर भी गुप्ता बिना तनख्वाह के डीजीपी बने हुए हैं। बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी इसे असंवैधानिक और भ्रष्टाचार का खेल बता रहे हैं। मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
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हेमंत क्या दे रहे हैं तर्क?
हेमंत सोरेन का कहना है कि गुप्ता को रखना पुलिस में स्थिरता के लिए जरूरी है, खासकर चुनाव के बाद. लेकिन बीजेपी का इल्जाम है कि गुप्ता को ‘खास’ कामों के लिए संरक्षण मिल रहा है. गुप्ता के खिलाफ पुराने भ्रष्टाचार के केस भी चर्चा में हैं. सुप्रीम कोर्ट में 6 मई को सुनवाई हुई थी और हाई कोर्ट में 16 जून 2025 को होगी. अगर कोर्ट केंद्र के पक्ष में गया तो हेमंत के लिए मुश्किल होगी.
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क्या गुप्ता का सेवा विस्तार मिलेगा?
कानूनन, गुप्ता को सेवा विस्तार देना आसान नहीं. आईपीएस अधिकारियों का विस्तार केंद्र की मंजूरी के बिना नहीं हो सकता और केंद्र ने साफ मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी यूपीएससी पैनल को जरूरी मानता है, जिसे हेमंत सरकार ने नजरअंदाज किया. गुप्ता का वेतन रुका हुआ है और कोर्ट में केस चल रहा है.
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लालू ने भी ऐसा ही किया था
बता दें कि, बिहार में लालू यादव और राबड़ी देवी के राज (1990-2005) में भी डीजीपी नियुक्तियां विवादों में रहीं। डीपी ओझा और आरआर प्रसाद जैसे डीजीपी पर सत्ताधारी राजद के प्रति वफादारी और विपक्ष के खिलाफ पक्षपात के इल्जाम लगे। उस वक्त यूपीएससी पैनल का नियम नहीं था, लेकिन पुलिस पर सियासी दबाव की बात आम थी। झारखंड में गुप्ता का मामला भी ऐसा ही है, जहां बीजेपी कह रही है कि हेमंत अपने ‘वफादार’ को बचा रहे हैं।
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सियासी जंग का असली रंग
ये विवाद सिर्फ डीजीपी की कुर्सी का नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य की ताकत की लड़ाई है। हेमंत पुलिस पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, वहीं बीजेपी इसे मौका मानकर जेएमएम सरकार को घेर रही है. बिहार के लालू के समय की तरह, यहां भी सत्ता और पुलिस का गठजोड़ चर्चा में है. ऐसे में हेमंत सोरेन ने डीजीपी विवाद में केंद्र से टक्कर लेकर बड़ा दांव खेला है. गुप्ता बिना वेतन के डीजीपी बने हुए हैं, लेकिन कोर्ट का फैसला इस ड्रामे का अंत लिखेगा. अगर केंद्र जीता तो हेमंत की किरकिरी होगी. अगर हेमंत जीतते हैं तो इससे केंद्र की बदनामी होगी. कुलमिलाकर हेमंत का दांव चला तो आने वाले दिनों में मिसाल बनेगा. अगर नहीं चलेगा तो लालू भी हेमंत की तरह विवादों में फंस जाएंगे?
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