कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। पुलिस का नाम सुनकर ही अक्सर लोग खौफ खाते हैं, समाज में अच्छे खासे इज्जतदार लोग पुलिस थाने में जाने से भी कतराते हैं। लेकिन MP में अब तस्वीर बदल रही है, यहां कुछ पुलिसकर्मी ऐसे भी हैं जिनकी सोशल पुलिसिंग दूर-दूर तक चर्चाओं में रहती है। यही वजह है कि उनसे मिलने लोग लालायित रहते हैं।

दरअसल, सोशल मीडिया के दौर में जहां एक ओर पुलिस की कारगुजारियां खूब वायरल होती है, वहीं उनके अच्छे कामों को भी लोग खूब अप्रिशिएट करते है। ग्वालियर जिले के अलग-अलग सर्किलों में तैनात रहे और मौजूदा बेंहट सर्कल के SDOP संतोष कुमार पटेल ऐसे ही पुलिस अधिकारी हैं। जिनकी आम लोगों में अलग ही छवि है। वे शोषित एवं पीडित शिकायतकर्ताओं की मदद करते रहते हैं। गरीब आदिवासी बच्चों के स्कूल में दाखिले की बात हो या दो पक्षों की लडाई को आपसी सहमति से निपटाने की कोशिश करते हैं।

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कई घटनाओं में लोगों ने उनके कार्य की जमकर तारीफ की है। यही सब कारण है कि उनका एक प्रशंसक सहदेव सिंह जो रहने वाले तो उत्तर प्रदेश के जालौन के हैं लेकिन वह लंबे अरसे से मुंबई चौपाटी पर कोल्ड ड्रिंक की रेहडी लगाते हैं। वह सोशल मीडिया पर उनके द्वारा गरीबों आदिवासियों पीड़ित शोषित वर्ग की मदद के वीडियो देखते रहते हैं। वह संतोष कुमार पटेल के कार्यों से इतने प्रभावित हैं कि कई महीनों से वे उनसे मिलने के लिए तरस रहे थे। आखिरकार जब उन्हें मुंबई से ग्वालियर आने का ट्रेन में आरक्षण नहीं मिला तो वह जनरल बोगी में बैठकर ग्वालियर आ गए और यहां वो सीधे पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे। जहां संयोग से बेंहट एसडीओपी पटेल मौजूद थे।

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SDOP संतोष पटेल को देखकर सहदेव सिंह की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। संतोष पटेल ने जब अपने प्रशंसक की बातें सुनीं तो उन्होंने उसे गले लगा लिया। पुलिस के प्रति प्रेम ही सहदेव सिंह को मुंबई से ग्वालियर खींच लाया। उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मी खराब हो सकता है लेकिन पुलिस तो हमेशा लोगों की मदद के लिए कार्य करती है। उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों से अपील की है कि वह ऐसे कार्य करें जिससे लोग उन्हें एक समाज सेवक के रूप में याद करें और विभाग की छवि भी बेहतर हो। वही मुंबई से ग्वालियर पहुंचे सहदेव सिंह ने कहा है कि वह संतोष कुमार पटेल के व्यवहार उनके माता-पिता के अपने पुश्तैनी किसानी कार्य से जुड़े रहने से बेहद प्रभावित हुए और वह इसी के चलते ग्वालियर आए हैं। खास बात यह है कि वह एक पैर से विकलांग फिर भी तमाम तकलीफों को ताक पर रखकर यहां पहुंचे।

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