ज्ञाना चंद्रा, भोपाल। भोपाल गैस कांड को 40 साल हो गए, 2 दिसंबर 1984 की रात 8:30 बजे से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की हवा धीरे धीरे जहरीली होनी शुरू हो गई थी। जैसे जैसे रात बीती वैसे वैसे अस्पतालों में मरीजों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। सुबह तक तो राजधानी कब्रिस्तान में तब्दील हो गई।
टैंक नंबर 610 से शुरू हुआ मौत का खेल
भोपाल गैस त्रासदी की गिनती सबसे खतरनाक औद्योगिक दुर्घटना में होती है। इसमें न जाने कितनों की जानें गई, कितने अपंग हो गए। इस बात का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। सरकारी आंकड़ों की बात करें तो, 15 हजार से 20 हजार लोगों ने अपनी जानें गवाइ थी। जिसका दंश आज भी दिखाई पड़ता है। कारण था यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का लीक होना। गैस के लीक होने की वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना। इससे टैंक में दबाव बन गया और वो खुल गया। फिर इससे निकली वो गैस, जिसने हजारों की जान ले ली और लाखों को विकलांग बना दिया।
घंटों बाद बचा था अलार्म
इस तरह के हादसे के लिए भोपाल तैयार नहीं था। जानकार बताते हैं कि उस समय फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बंद रहा था। जबकि उसे बिना किसी देरी के ही बजना था। जैसे-जैसे रात बीत रही थी, अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही थी। लेकिन डॉक्टरों को ये मालूम नहीं था कि हुआ क्या है? और इसका इलाज कैसे करना है?
मुख्य आरोपी ऐसे भगा की आज तक लौट कर नहीं आया
हादसे का मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन इस कंपनी का CEO था। जिसे 6 दिसंबर 1984 को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उसे सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से वो अमेरिका चला गया। इसके बाद एंडरसन कभी भारत लौटकर नहीं आया। कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था। 29 सितंबर 2014 को फ्लोरिडा के वीरो बीच पर 93 साल की उम्र में एंडरसन का निधन हो गया।गैस लीक होने के 8 घंटे बाद भोपाल को जहरीली गैस के असर से मुक्त मान लिया गया था, लेकिन 1984 में हुई इस दुर्घटना से मिले जख्म 40 साल बाद भी भरे नहीं हैं।
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