शब्बीर अहमद/शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्य प्रदेश में महाकाल सवारी से ‘शाही’ शब्द हटाने को लेकर सियासत गरमा गई है। दरअसल, साधु संतों ने ‘शाही’ नाम को बदलने की मांग उठाई है। जिसके बाद से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच वार पलटवार शुरू हो गया। हालांकि अब प्रदेश सरकार महाकाल सवारी से ‘शाही’ शब्द हटाने के पक्ष में दिखाई दे रही है।

धर्मस्व मंत्री बोले- CM से करेंगे चर्चा

प्रदेश के संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी ने कहा कि संतों की मांग जायज है। गुलामी की निशानी खत्म होना चाहिए। साधु संतों की मांग को लेकर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से बात करेंगे। शाही शब्द की जगह नए शब्द का प्रयोग किया जाएगा। शाही की जगह कौन से शब्द का इस्तेमाल करें, इसे लेकर संतों से चर्चा करने के बाद फैसला लिया जाएगा।

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नाम बदलन चाहिए- मंत्री धर्मेंद्र लोधी

मंत्री धर्मेंद्र ने बताया कि पहले भी केंद्र और राज्य की सरकारों ने कई गुलामी के प्रतीक शब्दों को शब्दावली से हटाया है। सही बात है कि गुलामी के जो शब्द होते हैं वो हमें गुलामी की याद दिलाते हैं ऐसे में उनका बदला ही जाना चाहिए। वहीं कांग्रेस के आरोपों पर कहा कि कांग्रेस धर्म के नाम पर कुछ ना बोले वही बेहतर है। मुगलों के हिसाब से इतिहास लिखा गया था। वास्तविक इतिहास लिखने के लिए फिर से इसे लिखा जाएगा। अगर बाबर महान तो महाराणा प्रताप क्या ?

संतों के समर्थन में आए बीजेपी के पूर्व विधायक, सीएम से की ये मांग

महाकाल सवारी में ‘शाही’ शब्द को लेकर बीजेपी नेता ने भी आपत्ति जताई है। भाजपा के पूर्व विधायक यशपाल सिसोदिया संतों के समर्थन में आए है। उन्होंने कहा कि शाही शब्द इस्लामिक है। उन्होंने सीएम मोहन से नाम बदलने की मांग की है। सवारी को शाही की जगह दिव्य और भव्य सवारी कहे जाने का सुझाव भी दिया है।

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कांग्रेस ने साधा निशाना

‘शाही’ शब्द और महाकाल की सवारी मामले पर कांग्रेस का बयान सामने आया। प्रदेश प्रवक्ता अभिवन बरोलिया ने कहा कि भगवान बाबा श्री महाकाल से ही संसार का उद्भव है। शब्दों और नाम परिवर्तन बीजेपी की राजनीति का पुराना तरीका है। भाजपा सिर्फ नफरत की राजनीति करती है। धर्म में राजनीति सही नहीं है। केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार है, चाहे जितने, जिसका नाम बदले, इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

संतों ने की है मांग

दरअसल, प्रतिवर्ष श्रावण-भादो मास के प्रत्येक सोमवार को महाकाल की सवारी निकलती है। इसमें महाकाल पालकी में सवार होकर प्रजा का हाल जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं। महाकाल की अंतिम सवारी सबसे भव्य होती है, इसलिए इसे ‘शाही सवारी’ कहा जाता है। लेकिन अब ‘शाही’ कहने पर उज्जैन के संतों, विद्वानों और अखाड़ों के साधुओं में असहमति व आक्रोश है। भागवत आचार्य श्री भीमाशंकर जी शास्त्री ने धर्म सभा में शाही नाम को बदलने की मांग उठाई थी। साधु संतों का कहना है कि महाकाल की सवारी को ‘शाही सवारी’ न कहा जाए। इसके स्थान पर संस्कृत या हिंदी का कोई उपयुक्त शब्द प्रचलन में लाया जाए।

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