सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में 16 साल 6 महीने की नाबालिग लड़की ने याचिका दायर कर अपनी जबरन कराई गई शादी को रद्द करने की अपील की है. याचिका में उल्लेख किया गया है कि उसकी शादी 32 साल के एक व्यक्ति से उसकी इच्छा के खिलाफ की गई, जबकि वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. लड़की ने ससुराल में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का भी आरोप लगाया है. यह मामला बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत न्याय की मांग करता है. सुप्रीम कोर्ट 18 जून को इस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें लड़की ने अपनी शादी को रद्द करने और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने पर अपनी जान को खतरे का हवाला देते हुए सुरक्षा की मांग की है.

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जस्टिस उज्ज्ल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की बेंच एक नाबालिग की याचिका पर सुनवाई करेगी, जिसमें लड़की ने अपने पति पर विवाह के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया है. याचिका में यह भी मांग की गई है कि उसके खिलाफ उचित निर्देश जारी किए जाएं. लड़की ने आरोप लगाया है कि उसकी इच्छा के खिलाफ 9 दिसंबर 2024 को उसकी शादी कर दी गई, जबकि उसकी उम्र साढ़े सोलह वर्ष थी.

उसने यह आरोप लगाया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन उसके ससुर ने उसे बंदी बना रखा था, जबकि उन्होंने उसे अपने माता-पिता के पास लौटने की अनुमति देने का वादा किया था. याचिका में उल्लेख किया गया है कि यह रिट याचिका एक सोलह वर्षीय नाबालिग द्वारा उसके मित्र के माध्यम से दायर की गई है. इसके अनुसार, इस लड़की की शिक्षा जारी रखने की इच्छा थी, लेकिन उसका बाल विवाह कर दिया गया, और इस विवाह का विरोध करने के कारण उसकी जान को खतरा उत्पन्न हो गया है.

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नाबालिग ने बताया कि वह वर्तमान में अपने एक मित्र के साथ भागी हुई है और उसे यह चिंता है कि यदि वे बिहार लौटते हैं, तो उनकी जान को खतरा हो सकता है. लड़की ने कहा कि उसके माता-पिता ने छह महीने पहले उसकी शादी एक 32 या 33 वर्षीय व्यक्ति से जबरदस्ती कर दी थी, और शादी के तुरंत बाद उसे विदा कर दिया गया, जबकि उसकी दसवीं की बोर्ड परीक्षाएं नजदीक थीं. याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उसके ससुराल वालों ने शादी के लिए काफी धन खर्च करने का दावा किया और बार-बार उससे कहा कि वे एक बच्चा चाहते हैं.

याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके पति एक सिविल ठेकेदार हैं, जिन्होंने यह दावा किया कि याचिकाकर्ता के माता-पिता उसके कर्जदार हैं. पति का कहना है कि याचिकाकर्ता को शिक्षिका या वकील बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए आगे की पढ़ाई करने के बजाय विवाह को प्राथमिकता देनी होगी. इस स्थिति के कारण, याचिकाकर्ता ने अपनी शादी को रद्द करने और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत अपने ससुराल वालों और पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की. इसके साथ ही, उसने अधिकारियों से अपनी और अपनी मित्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया.

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मां की ओर से दर्ज हुई FIR

लड़की की मां ने 4 अप्रैल को पटना के पिपलावा थाने में एफआईआर (संख्या 59/25) दर्ज कराई, जिसमें उसके दोस्त सौरभ कुमार और उसके परिवार पर अपहरण का आरोप लगाया गया है. याचिका में यह दावा किया गया है कि यह एफआईआर इसलिए दर्ज की गई ताकि लड़की को जबरन ससुराल भेजा जा सके. लड़की ने सुप्रीम कोर्ट से इस एफआईआर के आधार पर किसी भी दमनात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने की अपील की है और साथ ही अपनी, सौरभ और उसके परिवार की सुरक्षा की भी मांग की है.

संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की मांग

याचिका में संविधान के अनुच्छेद 32 और 142 का उल्लेख किया गया है. अनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायालय में याचिका दायर करने का अधिकार प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 142 विशेष परिस्थितियों में न्याय के लिए आदेश जारी करने की शक्ति अदालत को देता है. लड़की ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह उसके हित में हस्तक्षेप करे और बाल विवाह को रद्द करे, ताकि उसकी शिक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार सुरक्षित रह सकें.

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बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई

यह मामला बाल विवाह जैसी सामाजिक समस्या के खिलाफ एक महत्वपूर्ण पहल है. भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों की शादी अवैध है. इसके बावजूद, कई स्थानों पर जबरन बाल विवाह के मामले सामने आते हैं. इस याचिका के माध्यम से नाबालिग लड़की ने न केवल अपने अधिकारों की रक्षा की मांग की है, बल्कि समाज में इस मुद्दे के प्रति जागरूकता फैलाने का भी प्रयास किया है.