रायपुर. छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ने आज साय सरकार का दूसरा बजट पेश किया. इस बार का 1,65,100 करोड़ का बजट पेश किया गया जो GATI पर आधारित है. वित्त मंत्री ने अपने बजट स्पीच की शुरुआत कविता के साथ की और कविता पढ़कर ही उन्होंने बजट पेश करते हुए वाणी को वीराम दिया. बजट पेश करने के दौरान मंत्री ओपी चौधरी ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी, छत्तीसगढ़ के कवि सुरेंद्र दुबे और अन्य की भी कविताएं पढ़ी.

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वित्त मंत्री ओपी चौधरी द्वारा पढ़ी गई कविताएं:

 “कोई जो पूछे शौर्य का पर्याय,  तो तुम वीर नारायण-गुण्डाधुर की तलवार लिख देना

कोई जो पूछे समानता का पर्याय,  तो तुम गुरु घासीदास महान लिख देना

कोई जो पूछे राम-राम का पर्याय,  तो तुम छत्तीसगढ़ी में जय जोहार लिख देना

और  कोई जो पूछे चारों धाम का पर्याय  तो तुम मेरे छत्तीसगढ़ का नाम लिख देना’

~आशुतोष 

“मैं शंकर का वह क्रोधानल, कर सकता जगती क्षार-क्षार

रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास

मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधारय

फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं

डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार

यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?

हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !”

~ पूर्व प्रधान मंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी

“छत्तीसगढ़ के बगिया ला, मिल जुल के सजाबो जी, हमर माटी  हमर तीरथ हे, अब राजिम कुंभ घलो नहाबो जी “

”धन्य-धन्य ये धरती, जिसमें कौशिल्या ने जन्म लिया,

सीता का बनवास हुआ, तो इस माटी में शरण दिया,

ये दक्षिण कौशल कुशावर्त, सिरपुर इसकी राजधानी थी,

कलचुरियों ने राज किया था, इसकी एक कहानी थी,

ये बाल्मीकि की तपोभूमि, तुरतुरिया गुण गाती है,

दोनों हाथ उठाकर बोलो, छत्तीसगढ़ की माटी है”

~कवि सुरेन्द्र दुबे

वित्त मंत्री चौधरी ने बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 8,500 करोड़ का प्रावधान किए जाने जिक्र करते हुए एक शायरी भी पढ़ी, जो इस प्रकार है…

“कितना खौफ होता है शाम के अंधेरें में, पूछ एन परिंदों से जिनके घर नहीं होते’

वहीं बजट पेश करते हुए अंत में उन्होंने यह कविता पढ़ी:

“अंधेरो से आँख मिलाने चला आया है जुगनुओं का कारवां

हम ढूंढ ही लेंगे अपने हिस्से की रोशनी

मशालें जलेंगी भी, राहें दिखेंगी भी

कुशासन की आंच से ठूंठ नहीं होगा किसी का भी भविष्य 

जड़ें सोख ही लेंगी अपने हिस्से का पानी विकास का,

बसंत आएगा पूरे शबाब पर, कोपलें फिर से फूटेंगी

कोयलें फिर से कूकेंगी”